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परिन्दो को कभी क्या , माँ ने उड़ना सिखाया था ,
उन्हे तो बस किसी शाख से गिरकर बताया था ।
तुम्ह भी चुप चाप चले आये हो महफ़िल से ,
तुम्हे भी क्या उसी ने जाम पिलाया था ।
हमे अब गम से दहशन नहीं कोई,
मिला के दर्द ,जाम खुशी का पिलाया था ।
शहर की गलियों के कुत्ते भी पहचान जाते ,
हिज्र के दिन किसने साथ निभाया था ।
संवर के टूट जाना है मुक्द्दर, मगर देखो ,
मेरे टूटे नसीबो पर वो भी मुस्कुराया था ।
सुना है बेवफा का तमगा दे गया वो ,
अन्धेरी रात उसने भी ये ’दीप’ जलाया था ।